वास्तु के अनुसार घर के निर्माण के लिए शुभमुहूर्त

वास्तु के अनुसार आपके सपनों के घर निर्माण के लिए क्या हो शुभमुहूर्त
वास्तु शब्द का अर्थ है निवास करना – वस् निवासे | अर्थात् निवास योग्य भूमि या जिस भूमि पर मनुष्य निवास करते हैं उसे वास्तु कहा जाता है | यह वास्तु शास्त्र ऋग्वेद काल से प्रारम्भ होकर आरण्यक,उपनिषद्,स्मृति और पुराणों की यात्रा करता हुआ वेदाङ्ग ज्योतिष के मुख्य मार्ग से संहिता ज्योतिष में विस्तार प्राप्त करके ज्योतिष शास्त्र का प्रमुख भाग हो गया | कालान्तर में इस वास्तुशास्त्र की स्वतंत्र सत्ता हो गई| मानव वास्तुशास्त्र के उपयोग से सुख,शान्ति व समृद्धि को प्राप्त करते हुए चरमोत्कर्ष को प्राप्त करने में सफल हुआ है | पञ्चभौतिक शरीर का पञ्च महाभूतों के साथ आंतरिक एवं बाह्य सन्तुलन ही मानसिक प्रसन्नता एवं शारीरिक सुख का आधार है | वास्तु शास्त्र की उत्त्पत्ति भी इसी सुख-शान्ति की प्राप्ति हेतु हुई है | घर मनुष्य,मिट्टी,लोहा,पाषाण व सीमेंट का ही निर्मित आश्रय स्थल नहीं है अपितु विभिन्न देवी-देवताओं का आश्रय स्थल होते हुए दिव्य-शक्ति का केंद्र भी है | इस वास्तुकला का उद्भव ऋग्वेद काल से होता हुआ पौराणिक विश्वकर्मा के उन्नत स्थापत्य को समेटे हुए वराहमिहिर आदि आचार्यों से सम्पुष्ट होकर जन-जन तक प्रसृत होता गया| सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति का यह सपना होता है कि वह अच्छे आवास में रहे और वह आवास उसका स्वयं का हो और वास्तु के अनुरुप हो | अत: वास्तु के अनुसार ही गृह निर्माण करना चाहिए |

भविष्यपुराण में स्वयं का गृह निर्माण अतीव आवश्यक कहा गया है क्योंकि –
गृहस्थस्य क्रियाः सर्वा न सिध्यन्ति गृहं विना | यतस्तस्मात् गृहारम्भप्रवेशसमयं ब्रूवे || परगेहे कृताः सर्वाः श्रौतस्मार्तक्रियादिका:| निष्फला: स्युर्यतस्तासां भूमीश: फलमश्नुते | -मुहूर्त चिंतामणि वास्तु प्रकरण(पियूषधारा)
अर्थात् दूसरे के घर में किए गए श्रौत और स्मार्त कर्मों का फल कर्ता यानि कर्म करने वाला नहीं पाता बल्कि उसका फल गृहपति को ही प्राप्त होता है अत: व्यक्ति के लिए गृह निर्माण आवश्यक माना जाता है | गृहारम्भ यदि शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो उत्तम प्रकृति का घर बिना किसी विघ्न बाधा के शीघ्र बन जाता है | उस वास्तु के अनुरुप घर का आरम्भ कौन-कौन से शुभ मुहूर्तों में किया जाए ? इसका विवरण नवीन गृह निर्माण करने वाले वास्तु प्रेमियों तक पहुँचाना इस शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य है |

गृहारम्भ मुहूर्त विचार
मनुष्य के सभी कार्य गृह में रहते हुए ही चलते रहते हैं अर्थात् गृह सभी कार्यों का साधक है | इस प्रकार सुव्यवस्थित गृह का निर्माण दैवज्ञ के द्वारा निर्दिष्ट शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए | मुहूर्त के विषय में सामान्य रूप से अथर्वण ज्योतिष में कहा गया है कि-
चतुर्भि: कारयेत्कर्म सिद्धिहेतोर्विचक्षण:| तिथिनक्षत्रकरणमुहूर्तेनेति निश्चय:|| दूरस्थस्य मुहूर्तस्य क्रिया च त्वरिता यदि | द्विजपुण्याहघोषेण कृतं स्यात्सर्व सम्पदम् | धर्म.इति.,अ.-१७,पृ.२९७
अर्थात् सफलता के लिए मनुष्य को तिथि,नक्षत्र,करण,मुहूर्त इत्यादि का विचार करके कार्य सम्पादित करना चाहिए | उचित तिथि के अभाव में नक्षत्र,करण,मुहूर्त के आश्रय से एवं उचित तिथि व नक्षत्र के अभाव में करण और मुहूर्त के आश्रय से तथा उचित तिथि,नक्षत्र,करण के अभाव में केवल मुहूर्त के आश्रय से एवं इन सभी के अभाव में विद्वान ब्राह्मण के द्वारा कहे गए समय में सफलता के लिए कार्य करना चाहिए |

गृहारम्भ में प्रशस्त मास
नारदपुराण में गृह निर्माण करने के लिए उचित मासों का निर्देशन किया गया है वहाँ पर कहा गया है कि-
सौम्यफाल्गुनवैशाखमाघश्रावणकार्तिका:| मासा: स्युर्गृहनिर्माणे पुत्रारोग्यधनप्रदाः | - ना.पु.अ.५६,श्लो. ५५८,५५९
अर्थात् मार्गशीर्ष,फाल्गुन,वैशाख,माघ,श्रावण,कार्तिक महीनों में गृह का आरम्भ करना पुत्र,आरोग्य और धन प्रदायक होता है |

अपराजित पृच्छा में कहा गया है कि-
चैत्रे शोकाकुलो भर्ता वैशाखे च धनान्वितः | ज्येष्ठे गृहा निपद्यन्ते आषाढे पशुनाशनम्|| श्रावणे धनवृद्धिश्च भाद्रे तु न वसेद्गृहे | कलहश्चाश्विने मासे भृत्यनाशश्च कार्तिके | मार्गशीर्षे धनप्राप्ति: पौषे वै कामसम्पदा | माघे चाग्निभयं कुर्यात् फाल्गुने श्रियमुत्तमाम् | अप.पृ.,अ.-६२,श्लो.२-४
अर्थात् चैत्र मास में गृह निर्माण आरम्भ करने से गृहस्वामी को शोक वैशाख – धन से सम्पन्न ज्येष्ठ – मृत्यु आषाढ़ – पशुओं का नाश श्रावण – धन की वृद्धि भाद्रपद – धन की कमी अश्विन – कलह कार्तिक – भृत्यों (नौकर) का नाश मार्गशीर्ष – धनप्राप्ति पौष – श्री लाभ माघ – अग्नि का भय फाल्गुन – लक्ष्मी की प्राप्ति होती है |

गृहारम्भ के विषय में अनेक आचार्यों का पृथक्-पृथक् मत है महर्षि वशिष्ठ के अनुसार फाल्गुन,माघ,वैशाख,आश्विन और कार्तिक मास में गृह का आरम्भ पुत्र,पौत्र और धन प्रदान करने वाला होता है जैसे -
मासे तपस्ये तपसि माधवे नभसि त्विषे | ऊर्जे च गृहनिर्माणं पुत्रपौत्रधनप्रदम् | -वा.सौ.,नवम भाग,श्लो.३८२
श्रीपति के द्वारा गृहारम्भ के विषय में चैत्र आदि द्वादश मासों का उत्तम विवेचन किया गया है जैसे –
शोको धान्यं मृत्ति: पशुहृतिर्द्रव्यवृद्धिर्विनाशो युद्धं भृत्यक्षतिरथ धनं श्रीश्च वह्नेर्भयत्वं | लक्ष्मीप्राप्तिर्भवति भवनारम्भकर्तु: क्रमेण चैत्रादूचे मुनिभिरुदितिं वास्तुशास्त्रोपदिष्टम् | - वा.सौ.,नवम भाग,श्लो.३८३
अर्थात् चैत्र में गृह निर्माण से शोक,वैशाख में धन-धान्य की वृद्धि,ज्येष्ठ में मृत्यु,आषाढ़ में पशुओं की हानि,श्रावण में धन की वृद्धि,भाद्रपद में विनाश,आश्विन में युद्ध,कार्तिक में भृत्यों की हानि,मार्गशीर्ष में धनलाभ,पौष में श्रीलाभ,माघ में अग्नि भय और फाल्गुन में लक्ष्मी की प्राप्ति होती है |

वास्तुराज वल्लभ में भी चैत्र आदि द्वादश मासों में गृहारम्भ का फल कहा गया है यथा- चैत्रे शोककरं गृहादिरचितं स्यान्माधवेSर्थप्रदं ज्येष्ठे मृत्युकरं शुचौ पशुहरं तद् वृद्धिदं श्रावणे| शून्यं भाद्रपदेSश्विने कलिकरं भृत्यक्षरं कार्तिके धान्यं मार्गसहस्ययोर्दहनभीर्माघे श्रियः फाल्गुने | वा.रा.व.,अ.-१,श्लो.-०७

मत्स्यपुराण में कहा गया है कि माघ और कार्तिक महीने को छोड़कर अन्य सभी महीनों में गृहनिर्माण शुभ होता है | सारसागर मत के अनुसार जिन मासों के फलों में अनेक विकल्प हैं या आचार्यों में मतभेद है उन मासों का त्याग ही उचित है परन्तु वास्तु सौख्य के अनुसार मास दोष केवल पाषाण और ईंट के गृह में ही होता है इसके अतिरिक्त काष्ठ यानि लकड़ी और पर्ण यानि घास-फूस के गृह में वास्तु दोष नहीं होता जैसे –
पाषाणेष्टिगृहादीनिनिन्द्यमासे न कारयेत्| तृणदारुगृहारम्भे मासदोषो न विद्यते | वा.सौ.,नवम भाग,श्लो.३९८

गृहारम्भ में नक्षत्र शुद्धि –
अश्विनी रोहिणी मूलमुत्तरात्र यमैन्दवम् | स्वाति ह्स्तोनुराधा च गृहारम्भे प्रशस्यते | म.पु.,अ.-२५३,श्लो.-६
अर्थात् अश्विनी,रोहिणी,मूला,उत्तराफाल्गुनी,उत्तराषाढा,उत्तराभाद्रपद,मृगशिरा,स्वाति,हस्त और अनुराधा ये नक्षत्र उचित माने गए हैं |

महर्षि पराशर के अनुसार उपरोक्त सभी नक्षत्रों में गृहारम्भ करने से मनुष्य को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है जैसे –
वास्तुपूजनमेतेषु नक्षत्रेषु करोति यः | समाप्नोति नरो लक्ष्मीमिति प्राह पराशर: | बृ.मा.,पृ.-७३,श्लो.-७३
पराशर के द्वारा इन नक्षत्रों के अतिरिक्त छ: अन्य नक्षत्र भी गृहरम्भ के लिए स्वीकृत किए हैं |

गृहारम्भ में दिवस का विचार
गृह आरम्भ करने के लिए रविवार और मंगलवार को छोड़कर अन्य सभी दिन प्रशस्त माने गए हैं जैसे-
आदित्यभौमवर्ज्यास्तु सर्वे वारा: शुभावहा: | - म.पु.,अ.-२५३,श्लो.-०७
वस्तुराजवल्लभ नामक ग्रन्थ में भी इसी विवरण का उल्लेख है |

गृहारम्भ मुहूर्त का विचार
मत्स्यपुराण में कहा गया है कि –
श्वेते मैत्रेsथ माहेन्द्रे गान्धर्वाभिजिति रौहिणे | तथा वैराजसावित्रे मुहूर्ते गृहमारभेत् | -म.पु.,अ.-२५३,श्लो.-८,९
अर्थात् श्वेत,मैत्र,माहेन्द्र,गांधर्व,अभिजित्,रौहिण,वैराज,सावित्र आदि मुहूर्तों में गृह आरम्भ शुभ होता है |

संग्रहशिरोमणि में भी कहा है –
श्वेते मैत्रे च माहेन्द्रे गन्धर्वभगरोहिणी | तथा वैरौ च सावित्रमुहूर्ते गृहमारभेत् | स.शि.,अ.२३,श्लो.-१०
अर्थात् श्वेत,मैत्र,माहेन्द्र,गांधर्व,भग,,रोहिणी,वैरोचन,सावित्र मुहूर्तों में गृहारम्भ शुभ कहा गया है |

गृहारम्भ में त्याज्य योग
गृहारम्भ काल में व्याघात,शूल,व्यतिपात,अतिगण्ड,विष्कुम्भ,गंड,परिघ, और वज्र योगों में गृहारम्भ नहीं करना चाहिए जैसे –
अत्र व्यतिपातपदेन महाव्यतिपातवैधृती च ग्राह्यौ| सूर्यसिद्धान्ते व्यतिपातत्रयस्य सर्वत्र निषेधान्न व्यवहारे वितर्क: | वा.सौ.नवम भाग,पृ.१३२ वर्ज्यं व्याघातशूले च व्यतिपातातिगण्डयो:| विष्कम्भगण्डपरिघवज्रयोगे न कारयेत् | म.पु.,अ.२५३,श्लो.-७,८

वास्तुराजवल्लभ में भी व्याघात,शूल,गण्ड,परिघ और वज्र योग वास्तु कर्म में वर्जित हैं | बृहद्वास्तुमाला में विष्कुम्भ और व्यतिपात योगों का त्याग किया है इनके अतिरिक्त अन्य ग्राह्य हैं जैसे –
विष्कम्भव्यतिपातकौ च न शुभौ योगा: परे शोभना: | वृ.वा.मा.,पृ.७४ गृहारम्भ में सूर्य एवं चन्द्र बल एवं शुभ लग्न का विचार मत्स्यपुराण के अनुसार – चन्द्रादित्यबलं लब्ध्वा शुभलग्नं निरीक्ष्येत् स्तम्भोच्छ्रयादि कर्तव्यमन्यत्तु परिवर्जयेत् | प्रासादेष्वेवमेवं स्यात् कूपवापीषु चैव हि | -म.पु.अ.-२५३,श्लो. ०१,१०
अर्थात् गृहारम्भ के लिए सूर्य व चन्द्र बल एवं शुभ लग्न का अवलोकन भी अवश्य करना चाहिए | सभी कार्यों को छोड़कर स्तम्भ गाड़ना चाहिए यही विधि प्रासाद,कूप और वापी आदि के आरम्भ में भी उपयोग में लाई जानी चाहिए | वस्तुराज वल्लभ के अनुसार बलयुक्त सूर्य सुख एवं बलयुक्त चन्द्रमा लक्ष्मी प्रदान करता है | शुभ ग्रह से युक्त और दृष्ट एवं द्विस्वभाव और स्थिर लग्न वास्तु निमित्त शुभ फल प्रदान करने वाला होता है | इसके अतिरिक्त भी शास्त्रकार ने तुला,वृष,कुम्भ,मिथुन,धनु और कन्या लग्न शुभ फल प्रदान करने वाले कहे हैं | वास्तु सौख्य में गृहारम्भ के द्वादश लग्नों का फल भी कहा गया है जैसे – मकर,वृश्चिक,कर्क लग्नों में नाश मेष,धनु और तुला लग्नों में कार्यों में अनावश्यक विलम्ब मिथुन,कन्या और मीन में धन-धान्य का लाभ कुम्भ,सिंह और वृष लग्नों में गृहारम्भ करने से शीघ्र ही सफलता की प्राप्ति होती है |

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